बाल तक हो गए रुई बाबा,
फिर भी है कितनी अन छुई बाबा |
की अपने पोते को देख रोती है ,
माँ बड़ी ही नहीं हुई बाबा ||
की ध्यान सबका बटा ही लेती है ,
कि खेल अपना बना ही लेती है |
कि सारा मैदान भी ही सम्भाले पर ,
मौत एक रन चुरा ही लेती है ||
कि जैसे नदिया उछाल लेती है,
सारे रस्ते निकाल लेती है |
कि कोई लड़का जो हो, लड़खड़ाता है,
एक लड़की संभाल लेती है ||
प्यार अंधियार था तो अंधरे हुए
ऐसे कितने हैं जिनके सबेरे हुए
हम तो दुनिया से कब के रिहा हो गए
ये तेरे लोग हैं हमको घेरे हुए